तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु थे उन्होंने अपने समुदाय के लोगों के लिए अपना जीवन बलिदान दिया था उन्होंने ऐसे भी लोगों के लिए अपना जीवन बलिदान दिया जो उनके समुदाय के नहीं थे उन्होंने धर्म की रक्षा भी की थी
गुरु तेग बहादुर इतिहास में हिंद की चादर के नाम से विख्यात है गुरु तेग बहादुर की शहादत को हर साल 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस (Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day 2020) के रुप में मनाया जाता है सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी की हत्या वर्ष 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक पर मुगल बादशाह औरंगजेब ने की थी
गुरु तेग बहादुर पर कई रिसर्च करने वाले कैलिफोर्निया विश्व विद्यालय के नोएल किंग इस घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि ‘गुरु तेग बहादुर की हत्या दुनिया में मानव अधिकारों की रक्षा करने के लिए पहली शहादत थी पंडित कृपा राम के नेतृत्व में 500 कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल आनंदपुर साहिब में गुरु तेग बहादुर से मदद लेने गया.
गुरु तेग बहादुर के पुत्र गोविंद राय को जब औरंगजेब के अत्याचारों के बारे में पता चला तो उन्होंने कहा कि भारत के लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए उनके पिता से ज्यादा सक्षम कोई नहीं है इसके बाद जब गुरु तेग बहादुर को एहसास हुआ कि उनका बेटा अब गुरु की गद्दी लेने के लिए तैयार है और इसलिए, एक दूसरा विचार दिए बिना, उन्होंने पंडितों से औरंगज़ेब को यह बताने के लिए कहा, कि अगर वह गुरुजी को इस्लाम में परिवर्तित करने में सक्षम है, तो हर कोई इस नियम का पालन करेगा.
औरंगजेब के सामने झुकना नहीं, शहीद होना किया मंजूर
आज भी इतिहास में औरंगजेब के कई किस्से भरे पड़े हैं भारतीय इतिहास में औरंगजेब को एक कट्टरपंथी इस्लामी मुगल बादशाह के रूप में जाना जाता है। औरंगजेब भारत को भी एक इस्लामिक राष्ट्र के रूप में परिवर्तित करना चाहता था और इसके लिए उसने हिंदुओं को कई तरह से मजबूर और प्रताड़ित भी किया।
परंतु गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब को चुनौती दी है कि वे मर जाएंगे लेकिन इस्लाम कबूल नहीं करेंगे।
इस बात से औरंगजेब को इतना गुस्सा आया कि उसने गुरु तेग बहादुरऔर उनके अनुयायियों को पांच दिनों तक शारीरिक यातनाएं दी गईं. उसे प्रस्तुत करने के लिए, गुरुजी के अनुयायियों को उनके सामने जिंदा जला दिया गया.
औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद भी गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म नहीं अपनाया और औरंगजेब जुल्मों का पूरी दृढ़ता से सामना किया. गुरू तेग बहादुर के धैर्य और संयम से आग बबूला हुए औरंगजेब ने चांदनी चौक पर उनका शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया और वह 24 नवंबर 1675 का दिन था, जब गुरू तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया. इसीलिए आज के दिन को गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस के रुप में मनाया जाता है |
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